२००५ का RTI एक्ट भारत के सामाजिक व राजनैतिक संदर्भ में एक मील का पत्थर साबित हुआ है। इस एक्ट के अंतर्गत कोई भी भारतीय नागरिक किसी भी पब्लिक संस्था से जानकारी प्राप्त करने का अधिकार रखता है। २०१७ की एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार केवल वर्ष २०१५-१६ में ही ९.७६ लाख RTI आवेदन प्राप्त हुए।
हालाँकि दायर किए हुए आवदानों में से एक बड़ा प्रतिशत ख़ारिज कर दिया जाता है जो कि RTI व्यवस्था में अधिक पारदर्शिता लाने का संकेतक है, २०१८ में लाए गए नए संशोधन एक बार फिर सामने आए हैं।
RTI एक्ट के संशोधन हेतु बिल जुलाई १९, २०१९ को लोक सभा में पेश किया गया।
RTI एक्ट में वांछित संशोधन
RTI बिल मुख्य सूचना आयुक्त तथा सूचना आयुक्त के कार्यकाल व सेवा की शर्तों में बदलाव प्रस्तावित करता है। यह बदलाव राज्य तथा केंद्र दोनो ही स्तरों पर किया जाना है जो इन्हें केंद्र सरकार के अधीन ले आएगा।
गहराई से देखने पर मुख्य सूचना आयुक्त तथा सूचना आयुक्त का कार्यकाल वर्तमान में ५ वर्ष या अधिकारी के ६५ वर्ष की आयु पूर्ण करने तक होता है किंतु RTI बिल के तहत इस कार्यकाल का निर्धारण अब केंद्र सरकार के अधीन होगा। केंद्र सरकार अधिकारियों के वेतन तथा भत्तों सम्बंधी निर्णय भी ले सकेगी। वर्तमान में यह चुनाव आयोग की वेतन पद्धति के अनुरूप है।
RTI बिल पर प्रतिक्रिया
RTI बिल में सुझाए गए संशोधन का एक मुख्य कारण यह बताया जा रहा है कि चुनाव आयोग तथा सूचना आयोग के कार्य पूर्णतया अलग हैं। बिल के समर्थक यह विश्वास करते हैं कि इस बदलाव से RTI एक्ट का कार्यान्वयन अधिक सुलभ हो जाएगा।
इसके विपरीत प्रस्तावित संशोधनों की RTI कार्यकर्ताओं एवं सूचना आयुक्तों ने निंदा की । इन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए इन संशोधनों से प्रणाली में पारदर्शिता पर प्रश्न चिन्ह लग जाने का ख़तरा बताया। RTI बिल से सूचना आयोगों के कार्य निष्पादन में व्यवधान आने पर भी चर्चाएँ की जा रही हैं।
परिवर्तन की राह
भारतीय RTI एक्ट को विश्व में अपनी तरह की अनूठी पहल के रूप में देखा गया है हालाँकि इसके सही कार्यान्वयन हेतु हमें अभी एक लम्बा रास्ता तय करना है। क्या RTI बिल पारित हो पाएगा और इसके सूचना आयोग पर क्या प्रभाव होंगे? यह तो वक़्त ही बताएगा।